नीमच

कैबिनेट मंत्री श्री सकलेचा और मंत्री डॉ मोहन यादव राष्ट्रीय दिग्दर्शिका संगोष्ठी के समापन सत्र में हुए शामिल

*मंत्री श्री सखलेचा और मंत्री डॉ. मोहन यादव राष्ट्रीय दिग्दर्शिका संगोष्ठी के समापन सत्र में हुए शामिल*

उज्जैन:- शनिवार को प्रदेश के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम तथा विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री श्री ओमप्रकाश सखलेचा और प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.मोहन यादव विक्रम विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय दिग्दर्शिका की संगोष्ठी के समापन सत्र में शामिल हुए।
राष्ट्रीय राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रो.सुधिश भदौरिया ने समापन सत्र में स्वागत भाषण दिया। संगोष्ठी के संयोजक डॉ.अरविंद रानाडे ने दो दिवसीय संगोष्ठी का संक्षिप्त परिचय दिया।
मंत्री श्री सखलेचा ने इस अवसर पर कहा कि यह संगोष्ठी भारत की आजादी के 75 वर्ष के अन्तर्गत अमृत महोत्सव का ही एक हिस्सा है। प्राचीन भारतीय संस्कृति में कालगणना ऋषि, मुनियों, वैज्ञानिकों और गणितज्ञों द्वारा की जाती थी, लेकिन समय के अन्तराल में गुलामी के दौरान अंग्रेजों ने हमें मानसिक रूप से यह जताने का प्रयास किया था कि वे हमसे श्रेष्ठ हैं, परन्तु वास्तविकता में अंग्रेज हमारे बराबर भी नहीं ठहरते हैं।
सरकार द्वारा भारतीय संस्कृति के मूल स्वरूप को पुन: मुख्य धारा में लाने का प्रयास किया जा रहा है। सरकारी कार्यालयों में जो पत्र व्यवहार होता है, उसमें प्राचीन हिन्दी कैलेण्डर के अनुसार तिथि लिखी जाना प्रस्तावित किया जाये। शिक्षा में वैदिक गणित, ज्योतिषिय गणित को भी शामिल किया जाये। नई पीढ़ी का परिचय हमारी प्राचीन संस्कृति से करवाया जाना बेहद जरूरी है। इस ओर हमें निरन्तर प्रयास करने हैं। हमें जन्मदिन की शुभकामनाएं भी भारतीय पंचांग के अनुसार तिथियों के आधार पर देना चाहिये। गणित के तहत शून्य हमने पूरी दुनिया को दिया है, फिर हम क्यों पाश्चात्य संस्कृति का अनुसरण कर रहे हैं। हमें अपनी सोच बदलनी होगी।
मंत्री श्री सखलेचा ने कहा कि इस दो दिवसीय संगोष्ठी में किये गये वैचारिक मंथन से निश्चित रूप से भविष्य में काफी सकारात्मक परिणाम हमें प्राप्त होंगे। इस प्रकार की संगोष्ठी आगे भी समय-समय पर आयोजित की जाना चाहिये।
मंत्री डॉ.यादव ने इस अवसर पर कहा कि उज्जैन में कुंभ मात्र स्नान का नहीं, बल्कि वेद, ज्ञान और विज्ञान के वैचारिक मंथन का भी होता है। उज्जैन कालगणना का केन्द्र है। कालगणना का वास्तविक स्थान यही है। भगवान महाकालेश्वर की भस्म आरती जन्म से लेकर मृत्यु तक की अवधि को दर्शाती है। उज्जैन यदि देखा जाये तो पूरे विश्व के केन्द्र में आता है। हमारी प्राचीन कालगणना बिलकुल सटिक हुआ करती थी। समय के अन्तराल में ग्रीनविच को कालगणना का केन्द्र बनाया गया, जो कि पूर्ण रूप से सही नहीं है। प्राचीन भारतीय संस्कृति का जुड़ाव सभी से होना जरूरी है, क्योंकि हमारी भारतीय संस्कृति वैज्ञानिक आधारित थी और यह सर्वश्रेष्ठ है। हमें गुड़ी पड़वा पर नववर्ष मनाना चाहिये। नई शिक्षा नीति में भी हमने बहुत-सारे बदलाव किये हैं। कालगणना के लिये तिथि पत्रक बनाये जाने पर जो विचार-विमर्श संगोष्ठी में किया गया है, निश्चित रूप से हम सबके लिये यह गौरव की बात होगी। मंत्री डॉ.यादव ने अपनी ओर से सबको शुभकामनाएं दी।
कार्यक्रम में मप्र प्रौद्योगिकी विज्ञान परिषद के श्री अनिल कोठारी एवं अन्य गणमान्य नागरिक मौजूद थे। आभार प्रदर्शन शासकीय माधव विज्ञान महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो.अर्पण भारद्वाज ने किया।

Related Articles

Back to top button