पेपर व नकल माफिया ओर उनके सफेदपोश आकाओ के खिलाफ कब होगी ‘‘सर्जिकल स्ट्राइक’’

*पेपर व नकल माफिया ओर उनके सफेदपोश आकाओ के खिलाफ कब होगी ‘‘सर्जिकल स्ट्राइक’’*
*बात मन की- निलेश कांठेड़*
सरकारें दिख रही लाचार, प्रतिभाओं से हो रहा खिलवाड़
किसी प्रतियोगी परीक्षा में बैठ रहे प्रतिभावान विद्यार्थी सुनहरे भविष्य के सपने देखते हुए सफलता पाने के लिए दिन-रात एक कर देते है। उनके माता-पिता भी उन्हें सफल बनाने के लिए खून-पसीने की कमाई अच्छी शिक्षा दिलाने व कोचिंग कराने में लगा देते है। *सफलता के ये सपने तब पानी-पानी हो जाते है जब पता चलता है जिस परीक्षा में वह बैठने जा रहे है उसके प्रश्नपत्र पहले ही नीलाम होकर पैसे वाले हाथों में पहुंच चुके है।* परीक्षाओं की पवित्रता ही खत्म नहीं हो रही बल्कि सरकारी तंत्र पर परीक्षा में निष्पक्षता बरतने का जो विश्वास था उसका भी गला घोंटा जा रहा है। राजस्थान में एक दिन पहले ही वरिष्ठ अध्यापक भर्ती परीक्षा में सामान्य ज्ञान के प्रश्नपत्र के साथ उदयपुर पुलिस ने 40 से अधिक अभ्यर्थियों सहित 50 जनों को पकड़ा है। *चर्चा है कि आठ-दस लाख रूपए में प्रश्नपत्र एक-एक अभ्यर्थियों को बेचे गए।* पुलिस से लेकर सरकार के मुखिया व मंत्री अपराधियों को नहीं छोड़ने व पेपर लीक करने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई करने का राग अलाप रहे है। ऐसे राग पर इसलिए भरोसा नहीं हो पा रहा है क्योकि ये राग पिछली कई प्रतियोगी परीक्षाओं में *जब भी पर्चा लीक हुआ तब भी अलापा गया था ओर विश्वास दिलाया गया कि ऐसी सख्त कार्रवाई होगी कि भविष्य में ऐसा नहीं होगा।* इस विश्वास के सहारे प्रतिभावान विद्यार्थी दिन-रात पसीना बहाते है कि अब भविष्य में पेपर आउट नहीं होगा ओर उनकी कड़ी मेहनत रंग लाकर नौकरी दिलाएगी। ये विश्वास हर बार पेपर लीक होने से छिन्न-भिन्न हो जाता है ओर नेता व अधिकारी बचाव में फिर वहीं सख्त कार्रवाई का बेसुरा बन चुका राग अलापने से बाज नहीं आते है। सत्ताधारी दल बचाव के लिए तर्क ढूंढता है तो प्रतिपक्षी दल सरकार पर हमले का अच्छा मौका मान तीखा वार करते है लेकिन राजनीतिक स्वार्थो की इस लड़ाई में प्रतिभावान विद्यार्थियों के भविष्य से खिलवाड़ हो रहा है। नकल व पेपर माफिया केवल राजस्थान की नहीं बल्कि राष्ट्रीय चुनोती बन चुका है। *सबसे बड़ा सवाल ये है कि भविष्य निर्धारण करने वाली महत्वपूर्ण परीक्षाओं में बार-बार प्रश्नपत्र आउट कैसे हो जाते है। इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी जिनको मिली हुई है उनके खिलाफ सेवाएं समाप्ति जैसी सख्त कार्रवाई क्यों नहीं होती है।* पेपर माफिया या नकल माफिया के नाम पर कुछ लोगों को पकड़ कर मीडिया में ये दावा कर दिया जाता है कि पेपर माफिया पुलिस के शिंकजे में है। पुलिस जिनको पकड़ती है वह तो पैसा कमाने की चाह में पेपर बेचने के काम में लग गए कुछ चेहरे मात्र होते है। जरूरत इस बात की है कि सुरक्षा के कड़े मानकों की पालना करते हुए जो प्रश्नपत्र छपवाएं जाते है वह बाजार में पहुंचते कैसे है। *प्रतियोगी परीक्षाएं लेने वाली एजेसिंयों के कौनसे अधिकारी ओर कर्मचारी है जो रातोरात करोड़पति-अरबपति बनने की चाह में प्रश्नपत्र इन पेपर माफिया तक पहुंचाते है।* देश के भविष्य से खिलवाड़ करने वाले ऐसे अधिकारियों व कर्मचारियों को संरक्षण देने वाले सफेदपोश आकाओं के चेहरे भी सार्वजनिक होने चाहिए। नकल गिरोह पनपाने वाले उन बड़े हाथों तक कानून के हाथ पहुंचने की जरूरत है। *पेपर लीक कर प्रतिभाओं के भविष्य से खिलवाड़ करने वालों को तो शायद भगवान भी माफ नहीं करेगा लेकिन भगवान के इंसाफ से पहले कानून का राज होने का दावा करने वालों को भी इंसाफ करने की जरूरत है।* पेपर माफिया का नासूर इतना फैल गया है कि अब पकड़ा-धकड़ी जैसी दवाओं से समाप्त नहीं होने वाला। उसकी जड़ में जाकर *पेपर लीकेज में लगे दुष्टप्रवृति वालों को ‘‘फांसी के फंदे’’ तक पहुंचाने वाली ‘‘सर्जिकल स्ट्राइक’’ की जरूरत है* ताकि भविष्य में देश में कोई भी किसी प्रतियोगी परीक्षा के प्रश्नपत्र को लीक करने की हिम्मत नहीं कर सके। ये मुद्दा कांग्रेस या भाजपा का नहीं होकर देश व राज्य की प्रतिभाओं के भविष्य से जुड़ा है, ऐसे में आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति से उपर उठकर पेपप माफिया को जड़ से समाप्त कर देने के लिए सामूहिक रूप से कार्य करने की जरूरत है। *हम संकल्प ले कि अपनी प्रतिभाओं के सपनों को किसी कीमत पर मुरझाने नहीं देंगे ओर ये सुनिश्चित करेंगे कि परीक्षाएं में चयन का एक मात्र पैमान कड़ी मेहनत से अच्छा प्रदर्शन ही रहे।* ऐसा होने पर ही हम सुनहरे राजस्थान व सुनहरे भारत का निर्माण कर पाएंगे।
*स्वतंत्र पत्रकार एवं विश्लेषक*
पूर्व चीफ रिपोर्टर, राजस्थान पत्रिका
अरिहन्त मीडिया एंड कम्युनिकेशन, भीलवाड़ा