मेवाड़ विश्वविद्यालय में अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन

मेवाड़ विश्वविद्यालय में अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का समापन
शोध गुणवत्ता को बढ़ाना होगा तभी हम बन सकेंगे विश्वगुरू: प्रो. मेहराजुद्दीन मीर
चित्तौड़गढ़(अमित कुमार चेचानी)। शोध गुणवत्ता को बढ़ाना होगा तभी हम विश्वगुरू बन सकेंगे। मौजूदा विष्व रैंकिंग सूची को देखें तो टाॅप 200 विश्वविद्यालयों में भारत का कोई भी विश्वविद्यालय शामिल नहीं है। यह दिखाता है कि हमें अपने शोध गुणवत्ता को बढ़ाना ही होगा। उक्त बातें मेवाड़ विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय अतंर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि केन्द्रीय विश्वविद्यालय कश्मीर के पूर्व कुलपति प्रो. मेहराजुद्दीन मीर ने कही। उन्होने आगे कहा कि भारत में एक हजार विश्वविद्यालय है। अब यह सही वक्त है कि हम अपने कौशलयुक्त युवाओं को शोध की दिशा में मोड़ सकें। इसमें कोई सन्देह नहीं है कि भारत की मेधा पूरे विश्व में विख्यात है। शिक्षण और शोध को वर्गीकृत करते हुए उन्होने कहा कि शिक्षक को अपने किये हुए शोध के आधार पर अध्यापन करना चाहिए और यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि वह अध्यापन समाज हित से जुड़ा हो। ग्रिफिथ विश्वविद्यालय आॅस्ट्रेलिया प्रो. अब्दुल सत्तार ने प्रतिभागियों को शोध के लिये प्रेरित करते हुए कहा कि जहां चाह है वहां राह है। हमेशा लक्ष्य ऊँचा रखिये, सफलता निश्चित मिलेगी। डीआरडीओ के वैज्ञानिक डाॅ. सन्दीप बिष्ट एवं डाॅ. अनिता सिंह ने अपने विचार साझा किये। कुलपति प्रो. आलोक मिश्रा ने विभिन्न उदाहरण देते हुए अंतरविषयी शोध का महत्व बताया। उन्होने कहा कि विज्ञान का क्षेत्र हो या कला का एक साथ मिलकर हम समाज के लिये क्या कुछ कर सकते है, यही शोध का अभीष्ट होगा। प्रतिकुलपति आनन्द वर्द्धन शुक्ल ने कहा कि अंतरविषयी शोध एक तरह से न केवल ज्ञान की शाखाओं का योग है बल्कि इसके परिणाम से बहुत बड़े स्तर पर समाज लाभान्वित होगा। दो दिवसीय अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी की सम्पूर्ण रिपोर्ट डाॅ. सुमित कुमार पाण्डेय ने प्रस्तुत की। इसके पूर्व चौथे तकनीक सत्रों में रेवा विश्वविद्यालय के डॉ. सैयद मुजम्मिल बाशा ने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर अपनी प्रस्तुति दी। उन्होंने एआई की चुनौतियों के साथ मशीन लर्निंग के प्रकार के बारे में भी विस्तार से बताया। उन्होंने मशीन लर्निंग में चुनौतियों और फेडरेटेड लर्निंग की चुनौतियों के बारे में भी चर्चा की। प्रा.े अब्दुल सत्तार ने शोध की नैतिकता पर एक इंटरैक्टिव सत्र को संबोधित किया है। इंटरेक्शन सत्र में छात्रों ने उत्सुकता से बातचीत की और अपनी जिज्ञासाओं का समाधान किया। पांचवें तकनीकी सत्र में राजस्थान सरकार के राज्य फोरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में सहायक निदेशक डॉ. मुकेश शर्मा ने फोरेंसिक विज्ञान के क्षेत्र में अपने अनुभव साझा किए। दूसरे दिन चैथे तकनीकी सत्र में प्रा.े वाई सुदर्शन, हिमांशु कुमार साध्या, ताहिर इजू ने तथा पांचवें तकनीकी सत्र में डॉ. मनोहर लाल मेघवाल, निरमा शर्मा, लवीना चपलोत, अनुभव राठौड़, शेजल तथा विश्वविद्यालय के एनएसएस वालन्टियर्स ने भी अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये। चौथे सत्र की अध्यक्षता डॉ. सोनिया सिंगला तथा पांचवें सत्र की अध्यक्षता प्रो. वाई. सुदर्शन ने की। कार्यक्रम के अन्त में प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किया गया। स्वागत भाषण संगोष्ठी संयोजक नूरा याकूबू ने दिया। संचालन नूहू बाॅबी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन संगोष्ठी आयोजन सचिव डाॅ. गुलजार अहमद ने दिया। कार्यक्रम का आरम्भ सरस्वती वन्दना और कुलगीत से हुआ तथा समापन राष्ट्रगान से हुआ। इस अवसर पर कुलसचिव दीप्ती शास्त्री, प्रो. चित्रलेखा सिंह, प्रो. येम्मानुर सुदर्शन, प्रो. हरिओम शर्मा, प्रो. आर. राजा, डाॅ. आर. एस. राणा, संगोष्ठी के सहसंयोजक लोन फैसल, डाॅ. अरूणा दुबे, डाॅ. नीलू जैन, एनएसएस कार्यक्रम अधिकारी शिवकुमार सहित विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।